OSI Model क्या है – OSI Model Layers और इसे OSI क्यों कहा जाता है | OSI Model in Hindi

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हेल्लो दोस्तों आज हम इस आर्टिकल में OSI Model के बारे में जानेंगे। OSI Model क्या है?, OSI Model Layers और इसे OSI क्यों कहा जाता है आदि के बारे में जानेंगे। साथ ही हम OSI Model के लाभ और नुकसान के बारे में भी जानेंगे। अगर आप OSI Model के बारे में विस्तार से जानना चाहते हैं तो इस आर्टिकल को अंत तक जरूर पढ़ें …

OSI Model क्या है
OSI Model क्या है

 

OSI Model क्या है? (What is OSI Model in Hindi) –

OSI Model का पूरा नाम Open System Interconnection Model है। OSI मॉडल बताता है कि किसी नेटवर्क में कैसे डाटा या इंफॉर्मेशन receive और send की जाती है। इस मॉडल की प्रत्येक लेयर का अपना अलग कार्य होता है ताकि डाटा को एक सिस्टम से दूसरे सिस्टम तक आसानी से पहुंचाया जा सके।

OSI मॉडल किसी नेटवर्क में दो उपयोगकर्ताओं के बीच कम्युनिकेशन के लिए एक रेफरेंस मॉडल है अर्थात इसका इस्तेमाल real life में नहीं होता है बल्कि इसका इस्तेमाल केवल है संदर्भ (reference) के रूप में किया जाता है। OSI मॉडल की प्रत्येक लेयर एक दूसरे पर depend नहीं रहती है लेकिन डाटा ट्रांसफर एक लेयर से दूसरे लेयर में होता है। प्रत्येक लेयर इसके ऊपर की लेयर को सर्विस प्रोवाइड करती है और यह सर्विस सभी लेयर के लिए useful होती है।

OSI मॉडल वर्ल्ड वाइड कम्युनिकेशन नेटवर्क का एक ISO स्टैंडर्ड मॉडल है जो एक नेटवर्किंग फ्रेमवर्क को डिफाइन करता है। OSI मॉडल यह भी बताता है कि नेटवर्क Hardware और Software के साथ है लेयर कैसे काम करता है। 

 

इसे OSI क्यों कहा जाता है? –

इस मॉडल को Open System Interconnection (OSI) इसलिए कहा जाता है क्योंकि यह मॉडल किन्हीं दो अलग-अलग सिस्टम को आपस में कम्युनिकेट करने के लिए अनुमति देता है फिर चाहे उनका इंटरनल आर्किटेक्चर कैसा भी हो। OSI रेफरेंस मॉडल दो अलग-अलग सिस्टम के बीच ओपन कम्युनिकेशन करती है, इसके लिए उसके इंटरनल hardware और software में कोई भी बदलाव करने की जरूरत नहीं होती है।

यह मॉडल लॉजिकल फंक्शन और sets of rules को groups में कर देता है जिन्हें प्रोटोकॉल्स कहा जाता है। दो या दो से ज्यादा सिस्टम के बीच कम्युनिकेशन स्थापित है और कनेक्ट करने के लिए लॉजिकल फंक्शन और sets of rules को groups में करना जरूरी होता है। internet networking और inter computing के लिए OSI reference model को अब एक primary standard माना जाता है। 

 

OSI Model Layers –

OSI model में  network/data communication को सात layers में विभाजित किया जाता है। इन सातो लेयर को group किया जाता है तीन groups में – Network, Transport और Application.

  • Layer 1,2,3 (physical, data link और network) को network support layer कहा जाता है।
  • Layer 4 (transport layer) end to end reliable data transmission प्रदान करता है।
  • Layer 5,6,7 (session, presentation और application) को user support layers कहा जाता है।
  • OSI मॉडल में पहले और दूसरे लेयर को media layer कहते है और layer 3,4,5,6,7 को host layer कहते है।

 

OSI Model Layers
OSI Model Layers

 

Physical Layer –

फिजिकल लेयर OSI मॉडल की सबसे निचली लेयर होती है। यह लेयर एक कम्युनिकेशन चैनल पर raw bits को broadcast करती है। यह  लेयर फिजिकल तथा इलेक्ट्रिकल कनेक्शन के लिए जिम्मेदार रहता है, जैसे – वोल्टेज, डाटा रेट आदि। इस में लेयर डिजिटल  सिग्नल को इलेक्ट्रिकल सिग्नल में बदल दिया जाता है।

इस लेयर में नेटवर्क की टोपोलॉजी अर्थात नेटवर्क का आकार (layout of network) का कार्य भी इसी लेयर में होता है। फिजिकल लेयर यह भी describe करता है कि कम्युनिकेशन wireless होगा या wired होगा। इस  लेयर को Bit Unit भी कहा जाता है।

इसके द्वारा यह डिफाइन किया जाता है कि नेटवर्क में दो डिवाइस के मध्य simplex, half-duplex और full duplex में से कौन सा ट्रांसमिशन मोड होगा। यह इंफॉर्मेशन को ट्रांसमिट करने वाले सिग्नल को निर्धारित करता है।

Physical layer protocols – ISO.2110, ISDN, IEEE 802, IEEE:802.2

Physical layer के Functions –

Data encoding, Bit synchronization, Bit rate control, Line configuration, Transmission mode, Physical topologies, Multiplexing, Circuit switching.

 

Data Link Layer –

Data link layer direct जुड़े हुए कंप्यूटरों के बीच error free communications लिंक करती है। यह 0 और 1 को frame में समाहित करता है। frame बिट की एक श्रंखला है जो डाटा की एक यूनिट बनाती है। इस लेयर में नेटवर्क लेयर द्वारा भेजे गए डाटा के पैकेट को decode तथा encode किया जाता है। यह लेयर यह भी ensure  करता है कि डाटा के ये पैकेट्स त्रुटि रहित है।

यह लेयर physical raw bit stream को पैकेट में ट्रांसलेट करती है। इन पैकेट्स को हम frames कहते हैं। यह लेयर इन frames में header और trailer को add करती है। इस प्रकार डाटा लिंक लेयर फ्रेम और प्रदर्शन error checking का निर्माण करती है। यह सुनिश्चित करता है कि फ्रेम अगली लेयर तक उसी क्रम में भेजे जाते हैं जो  उन्हें प्राप्त हुए थे। डाटा लिंक लेयर नेटवर्क लेयर को error free virtual path सर्विस प्रोवाइडर करता है।

Data link layer में दो मुख्य sub layers होती है –

Logical Link Control (LLC)

Medium Access Control (MAC)

Data link layer के functions –

Physical addressing, Frame traffic control, Frame sequencing, Frame delimiting, Frame error checking, Media access management, Flow control, Feedback.

 

Network Layer –

नेटवर्क लेयर OSI मॉडल का तीसरा लेयर है। इस लेयर में switching तथा routing तकनीकी का प्रयोग किया जाता है। इसका कार्य लॉजिकल ऐड्रेस अर्थात IP address उपलब्ध कराना है। नेटवर्क लेयर में जो डाटा होता है वह पैकेट (डाटा के समूह) के रूप में होता है और इन पैकेटों को source से destinnation तक पहुंचाने का काम नेटवर्क लेयर का होता है । इस लहर को पैकेट यूनिट भी कहा जाता है। 

Network layer protocols – IP, ARP, RARP, ICMP, IGMP, IPX, OSEP, RIP, NWLINK, NETBEUL, DECENT, OSPF, OSI.

Network layer में तीन मुख्य sub layers होती है –

  • Subnetwork access
  • Subnetwork dependent convergence
  • Subnetwork independent convergence

Network layer के functions –

Subnet traffic control, Logical-Physical address, Mapping, Subnet usage accounting, Internetworking, Routing, Packetizing, Fragmentation.

 

Transport Layer –

Transport layer जिसे की end to end layer भी कहा जाता है। यह मैनेज करती है end to end (source to destination) (process to process) message delivery एक network में और साथ में error checking भी प्रदान करती है। इस बात की गारंटी प्रदान करती है कि कोई भी डुप्लीकेशन या error न occur हो  data transfers में across the network.

यह end to end error recovery और flow control की सुविधा भी प्रदान करता है। यह जांच करता है कि एक fast link slow receiver को over run नहीं कर सकता है। 

Transport layer protocols TCP, ARP, RARP, SPX, NWLINK, NETBIOS, NETBEUL, ATP.

Transport layer के functions –

Message traffic control, Session multiplexing, Service point addressing, Flow control, Error control.

 

Session Layer –

Session layer, Network entities के बीच कम्युनिकेशन स्थापित करने, बनाए रखने, synchronized करने और मैनेज करने के लिए नेटवर्क जोड़ती है। यह विभिन्न hosts पर रहने वाली प्रक्रियाओ को एक दूसरे के साथ बातचीत करने की अनुमति देता है।

यह मैनेज करने के लिए सेवाएं प्रदान करता है कि कौन किसी विशेष समय पर और कितने समय के लिए डाटा ट्रांसफर कर सकता है। जब भी कोई यूजर कोई भी वेबसाइट खोलता है तो यूजर के कंप्यूटर सिस्टम तथा वेबसाइट के server के मध्य तक सेशन का निर्माण होता है। सेशन लेयर का मुख्य कार्य है यह देखना है कि किस प्रकार कनेक्शन को establish, maintain तथा terminate किया जाता है। 

Session layer protocols – NetBIOS, Mail Slots, Names Pipes, RPC.

Session layer के functions –

Session support, Dialog control, Dialog separation, Synchronization.

 

Presentation Layer –

यह स्तर डाटा विस्तार data encryption और data decryption को compress करने के लिए जिम्मेदार है। यह कम्युनिकेशंस प्रक्रिया के प्राप्त करने और भेजने दोनों सिरों पर एप्लीकेशन लेयर और nodes की आवश्यकताओ  के अनुकूल होने के लिए data का translation या format करता है। Presentation Layer को Translation Layer भी कहा जाता है।

OSI Presentation layer data representation, convert करता है plain text को code में जैसे कि encryption में होता है और साथ में डाटा की decoding भी करता है। यह लेयर ऑपरेटिंग सिस्टम से संबंधित है। 

Presentation layer protocols – SMB, NCP.

Presentation layer के functions –

Character code translation, Data conversion, Data compression, Data encryption.

 

Application Layer – 

Application layer User के लिए OSI वातावरण तक पहुंच प्रदान करती है और distributed information services भी प्रदान करती है। एप्लीकेशन लेयर का मुख्य कार्य हमारी वास्तविक एप्लीकेशन तथा अन्य लेयरों के मध्य  इंटरफ़ेस कराना है। एप्लीकेशन लेयर end user के सबसे नजदीक होती है। यह लेयर यह नियंत्रित करती है कि कोई भी एप्लीकेशन किस प्रकार नेटवर्क से एक्सेस करती है।

ये application layer एक windows के तरह काम करता है users और application processes के लिए जिससे वह network services को एक्सेस कर सके। जब आप emails को download या send करते हैं तब आपके email program इस layer को contact करता है। 

Application Layer protocols – DNS, FTP, TFTP, BOOTP, SNMP, RLOGIN, SMTP, MIME, NFS, FINGER, TELNET.

Application Layer के functions –

Resource sharing and device redirection, Remote file access, Remote printer access, Inter-process communication, Network management, Directory services, Electronic messaging.

 

OSI Layer क्या होता है? –

Communication process में Layering का मतलब होता है एक ऐसा process जिसका मतलब होता है communication process को breaking down करना smaller और easier to handle interdependent कैटेगरी में। 

 

Layer Protocol क्या है? –

वो convention और rules जिनका इस्तेमाल ऐसे कम्युनिकेशन में होता है उन्हें collectively Layer Protocol कहा जाता है। 

 

OSI Model की स्थापना कब की गई? –

Open System Interconnection (OSI) model को develop किया ISO (International Organization for Standardization) ने सन 1984 में। ISO वह organization है जो की पूरी तरह से dedicated होता है ऐसे global communication और standards को define करने के लिए।

 

OSI Model के फीचर्स (Features of OSI Model in Hindi) –

  • यह मॉडल दो लेयर में विभाजित होता है। एक upper layers और दूसरा lower layers.
  • इसकी upper layer मुख्यतया application से संबंधित issues को हैंडल करती है और यह केवल software पर लागू होती है। एप्लीकेशन लेयर end user के सबसे नजदीक होती है।
  • OSI मॉडल की lower layers जो है वह data transport के issues को हैंडल करती है। डाटा लिंक लेयर और फिजिकल लेयर hardware और software में लागू होती है। 
  • फिजिकल लेयर सबसे निम्नतम लेयर होती है और यह फिजिकल मीडियम के सबसे नजदीक होती है। फिजिकल लेयर का मुख्य कार्य फिजिकल मीडियम में डाटा या इंफॉर्मेशन को रखना होता है। 

 

OSI Model के लाभ (Advantages of OSI Model in Hindi) –

  • यह एक जेनेरिक मॉडल है तथा इसे स्टैंडर्ड मॉडल माना जाता है। OSi model की लेयर जो है वह services, interfaces तथा protocols के लिए बहुत ही विशिष्ट है।
  • यह बहुत ही flexible मॉडल होता है क्योंकि इसमें किसी भी प्रोटोकॉल को implement किया जा सकता है। यह कनेक्शन oriented तथा connectionless दोनों प्रकार की सर्विस को support करता है।
  • यह divide तथा conquer तकनीकी का प्रयोग करता है जिससे सभी सर्विस  विभिन्न लेयर में कार्य करती है। इसके कारण OSI model को administrate तथा maintain करना आसान हो जाता है।
  • इसमें एक लेयर में change कर कर भी दिया जाए तो दूसरी लेयर में इसका प्रभाव नहीं पड़ता है। यह बहुत ही ज्यादा सिक्योर तथा adaptable है। 

 

OSI Model के नुकसान (Disadvantages of OSI Model in Hindi) –

  • इसमें कभी-कभी नए प्रोटोकॉल को लागू करना कठिन हो जाता है क्योंकि यह मॉडल इन प्रोटोकॉल के बनने से पहले ही बन गया था।
  •  यह मॉडल किसी विशेष प्रोटोकॉल को परिभाषित नहीं करता है। इस मॉडल के सभी लेयर्स एक दूसरे पर inder dependent होती है।
  • इसमें सर्विस का duplication हो जाता है जैसे कि transport तथा data link layer दोनों के पास error control विधि होती है। 

 

 

निष्कर्ष (Conclusion) –

आज हमने इस आर्टिकल में  OSI Model के बारे में विस्तार से जाना है। इस पोस्ट में बहुत ही सरल भाषा में OSI Model को समझाने की कोशिश की है जो आसानी से हर किसी को समझ में आ सकता है। मुझे उम्मीद है कि आपको यह आर्टिकल OSI Model क्या है हिंदी में पसंद आया है तथा कुछ सीखने को मिला होगा। 

 

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