Arithmetic Logic Unit (ALU) क्या है और ALU के कार्य के बारे में विस्तार से जानिए

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हेल्लो दोस्तों इस आर्टिकल में आप ALU के बारे में जानेगे । ALU क्या है?, एक CPU में कितने ALU होते हैं?, ALU Operations,  ALU के घटक, ALU के डिजाइन कैसे होते हैं?, ALU के कार्य, ALU को किसने बनाया था?, ALU के लाभ, ALU के नुकसान आदि के बारे में जानेगे ।  

Arithmetic Logical Unit (ALU)

Arithmetic Logic Unit (ALU) क्या है?  :-

ALU का पूरा नाम Arithmetic Logic Unit है । ALU लॉजिक सर्किट का एक संग्रह है । यह एक हलेक्टॉनिक सर्किट है। ALU, सीपीयू का वह भाग है जो कंप्यूटर निर्देशों के अनुसार ऑपरेंड पर अंकगणित और लॉजिक/तर्क संचालन करता है । कंप्यूटर सिस्टम के अन्य सभी तत्व मुख्य रूप से डैटा को ALU में प्रोसेस करने के लिए काम में आते है और फिर परिणाम वापस लेते है ।

यह अंकगणित और लॉजिक संचालन के लिए जिम्मेदार है। अंकगणित आर तर्क इकाई किसी भी प्रोसेसर का मूल है। आमतौर पर प्रोसेसर में, ALU को दो यूनिट में विभाजित किया जाता है, अंकगणित यूनिट (Arithmetic Unit)  और लॉजिक यूनिट (Logic Unit) 

कुछ प्रोसेसर में एक से अधिक AU होते हैं जैसे फिक्स्ड पॉइंट (Fixed-point) ऑपरेशंस के लिए और दूसरा फलोटिंग पॉइंट (Floating-point) ऑपरेशंस । अर्थमेटिक लॉजिक यूनिट के बारे में और गहराई से जानने के लिए, चलिए पहले समझते है AU और LU आसल में क्या है ।

 

एक CPU में कितने ALU होते हैं? (How many ALUs are in a CPU):-

केंद्रीय प्रोसेसर (CPU) में दो अंकगणितीय तर्क इकाइयाँ (ALU), एक समानांतर तर्क इकाई (PLU) और रजिस्टर होते हैं। पहले ALU को केंद्रीय ALU (CALU) कहा जाता है। इसका उपयोग दो पूरक अंकगणित के लिए किया जाता है और इसमें निम्नलिखित शामिल हैं: एक 16 × 16 बिट गुणक जो 32-बिट उत्पाद का उत्पादन करता है।

 

ALU Operations :- 

इसके ऑपरेशन:-

1.  Logical Operation (बिट ऑपरेशन) –

लॉजिक ऑपरेशन को हिंदी में तार्किक संचालन कहते है। इसमें NOR, NOT, AND, NAND, OR, XOR जैसे कार्य शामिल है।

2. Bit-Shifting Operation (बिट-शिफ्टिंग ऑपरेशन) –

Bit-shifting operations में bits को left और right तरफ शिफ्ट किया जाता है।

3. Arithmetic Operation (अर्थमेटिक ऑपरेशन) –

अर्थमेटिक ऑपरेशन में जोड़ , घटाना, भाग और गुणा जैसी कैलकुलेशन शामिल है। 

 

ALU के घटक (Components of ALU):- 

इसके तीन घटक होते है:-

1. एक्युमुलेटर (Accumulator):-

Accumulator एक स्टोरेज की तरह काम करता है क्योकि यह प्रोसेसिंग के दौरान प्राप्त होने वाले डेटा को स्टोर करके रखता है। accumulator काफी तेज और कम जटील होते है। इसका सबसे अच्छा उदहारण डेस्कटॉप कैलकुलेटर हो सकता है।

2. स्टैक (Stack):-

ALU में नए ऑपरेशन से प्राप्त होने वाले डेटा को स्टैक में स्टोर किया जाता है।

3. Register – Stack Architecture:-

यह रजिस्टर और एक्यूमुलेटर के ऑपरेशन से मिलकर बना होता है। रजिस्टर-स्टैक आर्किटेक्चर में किए जाने वाले ऑपरेशन के परिणामो को स्टैक के top पर रखा जाता है। इसमें जटिल गणना करने के लिए पॉलिश विधि (polish method) का उपयोग किया जाता है।

ALU के डिजाइन कैसे होते हैं?

ALU डिजाइन ट्रांसिस्टर पर निर्भर करता है। ट्रांजिस्टर के ऑन या ऑफ होने से कंप्यूटर की स्क्रीन पर True या False दिखाया जाता है। सभी ट्रांजिस्टर आपस में कनेक्टेड रहते हैं। इसमें कुल छह गेट होते हैं।

  • OR GATE – OR गेट के दो transistors होते हैं जो parallel कनेक्टेड होते हैं। इसमें A और B दो इनपुट होते हैं, जो अलग-अलग ट्रांसिस्टर्स पर दिए गए होते हैं। दोनों ट्रांसिस्टर को collector आपस में कनेक्ट करता है। अगर किसी एक कलेक्टर पर true लिखकर आता है तब आउटपुट भी true मिलता है, यही OR GATE का लॉजिक होता है।

 

  • AND GATE – एंड गेट में दो ट्रांजिस्टर को सीरियल में जोड़कर बनाया जाता है। जब इनपुट A true होता है, तब ट्रांसिस्टर A ऑन हो जाता है और जब ट्रांजिस्टर B के emitter पर बहुत ज्यादा वोल्टेज, मतलब कि true मिलता है और वह true आउटपुट देता है। अगर किसी एक ट्रांजिस्टर पर फॉल्स मिलता है, तो फिर उससे जुड़ा हुआ ट्रांसिस्टर भी आपको ऑफ मिलेगा और आपका आउटपुट फॉल्स आ जाएगा।

 

  • NOT GATE: NOT गेट में केवल एक ही ट्रांजिस्टर से डिजाइन किया जा सकता है। NOT GATE के लिए आउटपुट कलेक्टर से नहीं एमिटर से लिया जाता है।

 

  • ADDER:- इसमें ट्रांजिस्टर से एडर का डिजाइन निकलता है, इसी वजह से एडर को ALU में हमेशा लॉजिक गेट की मदद से बनाया जाता है। 

 

  • SUM:- एडर में SUM या फिर आउटपुट NOR गेट की तरह ही होता है। इसी वजह से SUM सर्किट या डिजाइन SUM गेट और NOR गेट के पैरलल में कनेक्टेड रहता है। कैरी आउटपुट और AND गेट के पैटर्न को फॉलो करता है। इसलिए कैरी सर्किट AND गेट के हिसाब से डिजाइन किया जाता है।

 

  • OR GATE:- OR गेट के डिफरेंस X-OR गेट के पैटर्न को फॉलो करता है और borrow आउटपुट के लिए किसी एक इनपुट को invert करके दूसरे इनपुट के साथ AND गेट में भेजा जाता है। 

इस तरह से हम अलग-अलग बेसिक Logical Gate से कठिन ऑपरेशन के सर्किट को डिजाइन कर सकते हैं। एलयू में इसी तरह से कई सर्किट डिजाइन होते हैं, जो अर्थमैटिक और लॉजिकल ऑपरेशंस का हल निकालते हैं।

ALU के कार्य :-

1. Arithmetic Operation –

  •  ADDITION – A + B 
  •  SUBTRACTION –  A – B 
  •  MULTIPLICATION –  A * B 
  •  DIVISION –  A / B 
  •  INCREMENT – A = A + 1 
  •  DECREMENT – A = A – 1 

जैसे Arithmetic Operations को ALU perform करता है। 

2. Bitwise Logical Operation –

  •          AND 
  •          OR 
  •          E – OR 
  •          NOT

3. Bit – Shifting Operation –

  •          ARITHMETIC SHIFT 
  •          LOGICAL SHIFT 
  •          ROTATE , etc 

 

ALU को किसने बनाया था :-

        बता दे की ALU को गणितज्ञ जॉन वॉन न्यूमैन [ John von Neumann ] ने सन1945 में EDVAC नामक एक नए Computer की नींव पर वह एक रिपोर्ट में ALU अवधारणा को बनाने का एक प्रस्ताव रखा था।

वह जिसमें सन1967 में वह फेयरचाइल्ड ने एक एकीकृत सर्किट के रूप में ALU को लागू किया गया था और इसके साथ ही पहला ALU पेश किया और उसके बाद फेयरचाइल्ड 3800 मै जिसमें संचायक के साथ 8-BIT ALU शामिल थे और ALU ने कंप्यूटर में बहुत बेहतरीन कार्य किया था।

 

ALU के लाभ :-

  • यह उच्च प्रदर्शन के साथ समानांतर वास्तुकला और अनुप्रयोगों का समर्थन करता है।
  • इसमें एक साथ वांछित आउटपुट प्राप्त करने और पूर्णांक और फ्लोटिंग-पॉइंट चर को संयोजित करने की क्षमता है।
  • इसमें बहुत बड़े सेट पर निर्देश निष्पादित करने की क्षमता है और इसमें सटीकता की एक उच्च श्रेणी है।
  • एक ही कोड में दो अंकगणितीय संचालन जैसे जोड़ और गुणा या जोड़ और घटाव, या किन्हीं दो ऑपरेंड को ALU द्वारा जोड़ा जा सकता है। मामले के लिए, A+B*C.
  • पूरे कार्यक्रम के दौरान, वे एक समान रहते हैं, और उन्हें इस तरह से रखा जाता है कि वे बीच के हिस्सों को बाधित न कर सकें।
  • सामान्य तौर पर, यह बहुत तेज़ है; इसलिए, यह जल्दी परिणाम प्रदान करता है।
  • ALU के साथ कोई संवेदनशीलता समस्या नहीं है और कोई स्मृति अपव्यय नहीं है।
  • वे कम खर्चीले हैं और लॉजिक गेट आवश्यकताओं को कम करते हैं।

 

ALU के नुकसान :-

  • ALU के साथ, फ्लोटिंग वेरिएबल्स में अधिक देरी होती है, और डिज़ाइन किए गए कंट्रोलर को समझना आसान नहीं होता है।
  • मेमोरी स्पेस निश्चित होने पर हमारे परिणाम में बग्स होंगे।
  • एमेच्योर को समझना मुश्किल है क्योंकि उनका सर्किट जटिल है; इसके अलावा, पाइपलाइनिंग की अवधारणा को समझना जटिल है।
  • एएलयू का एक सिद्ध नुकसान यह है कि विलंबता में अनियमितताएं हैं।
  • एक और अवगुण समाप्त हो रहा है, जो सटीकता को प्रभावित करता है।

 

निष्कर्ष (Conclusion) :-

इस आर्टिकल में आपने  ALU के बारे में जाना है इसको पढ़ने के बाद आपको समझ में आ गया होगा कि कंप्यूटर में ALU कैसे कार्य करता है , इस आर्टिकल से संबंधित सभी जानकारी  हमने आपको सरल भाषा में उपलब्ध करवाई है। उम्मीद है आपको ALU  क्या है? और ALU के कार्य  यह जानकारी अच्छी तरह समझ में आ गई होगी।

 

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